कोई ‘हस्ती’ कोई ‘मस्ती’
कोई ‘चाह’ पे मरता है..
कोई ‘नफरत’ कोई ‘मोहब्बत’
कोई ‘लगाव’ पे मरता है..
ये “देंश” है उन ‘दिवानों’ का
यहां हर बन्दा
अपने “हिंदुस्तान” पे मरता है..
मैं भारतवर्ष का हरदम अमिट सम्मान करता हूँ
यहाँ की चांदनी मिट्टी का ही गुणगान करता हूँ,
मुझे चिंता नहीं है स्वर्ग जाकर मोक्ष पाने की,
तिरंगा हो कफ़न मेरा, बस यही अरमान रखता हूँ